हालातों पर हंस लेती हूँ अपनेपन पर रो लेती हूँ | बिखेर कर मुस्कान प्यारी सी बीज प्यार के बो देती हूँ | मालूम नहीं कल क्या हो बस आज पर ही इतरा लेती हूँ | #AP#NP
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अप्रैल, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
जुगनू
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बचपन में मै ज़िसकी दिवानी थी | ज़िसको देख मै खुशी से चहक उठती थी |ज़िसकी चंचलता मुझे बहुत ही आकर्षित करती थी | ज़िससे मिलने के लिये मैं रात का इंतजार किया करती थी | रात्रि के घुप्प अंधेरे उसको देखना मेरे लिये किसी उपहार से कम नहीं होता था | उसका यूँ चमकते दमकते ,टिमटिमाते हुए आते देख मैं खुशी से चिल्ला उठती जूगनू जूगनू | पकडने के लिये दौड़ती और पकड भी लेती | उसको पकड दोनो हाथो का घेरा बना उसमे ऐसे झांकती तो ऐसा लगता मानो बन्द कमरे में लालटेन जल रही हो और अंगुलियो रूपी खिडकी से वो बाहर आने की कोशिश करता और मैं उसे फिर से मुठ्ठी में हलके से बन्द करने की कोशिश करती और फिर उसको रोशनी में ले जाकर देखती कि वो सिर्फ अंधरे में ही चमकता हैं या रोशनी में भी | सोचती भगवान ने भी कमाल भी बहुत कमाल किया इसे सबसे अलग बनाकर इसको तो पंखो के साथ रोशनी भी दी हैं | माँ से पूछा तो माँ ने कहा इसने कुछ ऐसा किया होगा कि भगवान खुश हो गये होंगे और इसे उपहार में दे दी होंगी •| नहीं माँ इसको ज़रूरत होगी और इसने भगवान से मांग ली होगी ये लालटेन | और इस तरह माँ के जवाबो स