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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
FB-123 अभी अभी  किसी ने इनबोक्स में पूछा ..... आपके यहां गर्मी कैसी है ???? हमारे यहां गर्मी बहुत अच्छी है जनाब .....जेठ की तपती धूप की चिलचिलाती गर्मी से लेकर सावन भादो की चिपचिपी गर्मी तक का अनुभव है हमे तो | हम तो आदी हो गये इस तरह की गर्मी के  आदी क्या ये कहो कि ऊब गये इस गर्मी से |                        और इस ऊब के साथ ही हम आजकल एक नयी गर्मी का आनन्द ले रहे है ....नयी गर्मी मतलब वही गर्मी ..ज़िसके बारे में लोग कहते है ...... ना गर्मी जून में होती है ,ना खून में होती है गर्मी तो जूनून में होती है | आजकल जूनून की गर्मी इस कदर हावी है कि मौसम की गर्मी का पता ही नहीं चलता |इसका मतलब ये नहीं कि हमे वातावरण की गर्मी  का अहसास ही नहीं| दिन में कम से कम एक बार तो हम धूप में जाकर पसीने से नहा ही लेते है वो इसीलिये कि कही बडे शहरो की चकाचौंध और ए .सी की ठंडक में में हम अपनी ग्रामीण पृष्ठभूमि को ना भूल ज़ाये|                   निसंदेह गर्मी बहुत है आप अपना ख्याल रखियेगा | इस झूठी उम्मीद के साथ गर्मी की तपिश को सहन कर लिजिये कि जल्दी ही सावन की रिमझिम फुहारे बरसेंगी | झूठी इसीलिये क
"चलते चलते /आँखो देखी " अच्छे खासे तो चल रहे थे दोनो मुझसे आगे |सुषुप्त ज्वालामुखी कब जाग्रत हो विस्फोटित हो गया पता ही नहीं चला | ख्यालो में खोयी सी  मैं यूँ ही  धीरे धीरे  चल रही थी |मुझसे चन्द कदम आगे चल रहे एक विवाहित जोडे में झगडा होने से मेरी तन्द्रा टूटी | बातें कुछ यूँ हुई ....... भसरी पै मार दूँगा .(महिला की तरफ मारने की मुद्रा में हाथ उठाते हुए ).. मार कै देख ..(सीना तान पुरूष की तरफ लपकते हुए ) धक्का दे दूँगी .....!!!!!!! दे कै देख .......!!!!!(और दे भी दिया  ..बेचारा गाडी के नीचे आते आते बचा ) इतना सुनते पुरूष को बीच रोड पर  धकेल दिया गया ..... वही ले जाकर मारूँगा .....(चन्द कदमो की दुरी पर बने पुलिस स्टेशन की तरफ इशारा करते हुए ) यहां मैने एक बात नोटिस की महिला की कथनी और करनी में बिलकुल अन्तर नहीं था ... . उपरोक्त वार्ता में हुई तमाम गालियों को मैने लिखने की हिम्मत नहीं की  और उसके  बाद भरी सड़क पर हुई गालियों और मारपीट  को लिखने का साहस मुझमे नहीं है | इतनी गंदी गालियों को सुनकर मैं शरम से पानी पानी हो रही थी  | हाँ चलते चलते एक बार मैने सड़क पर हो रहे
२५४ अभी अभी इनबोक्स में एक सज्जन ने पूछ लिया ..... हाईस्कूल से लेकर परास्नातक तक में कितनी बार आपको प्रथम श्रेणी प्राप्त हुई ??? "सफलता का अन्दाजा इस बात से ना लगाये कि आप कहाँ पहुँचे ब्लकि इस बात से लगाये कि आपने चलना कहाँ से शुरू किया था |" आपके  प्रमाण पत्रों  में  प्रथम श्रेणी मिलने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है आपका व्यवहार अव्वल दर्जे का हो |आप अपने संघर्ष को एंजॉय करते हो |सुख दुख में सम रहते है |मैने दौलत और शोहरत वालो को सुसाइड करते देखा है | सच बताऊँ तो मैने मार्कशीट में मिले अंको की कभी परवाह नहीं की क्योंकि मेरा आत्मविश्वास ,मेरा संघर्ष ,मेरी सहजता और मेरी आत्मीयता  अपनों के दिलो पर राज करने और ज़िंदगी की परीक्षा प्रथम आने के लिए काफी है |(#मियां_मिठ्ठू 😂) #अनितापाल
५०३ दिल से है ये अभिलाषा जुग जुग जिये मेरी मातृभाषा || #A.P
FB-251 कभी कभी आँसू जाते हैं हार कभी हार जाता हैं प्यार | हार जाती हैं यादे हार जाती हैं फरियादे | हार के इस सिलसिले में एक दिन ज़िंदगी भी जाती है हार || इसमें ही  हैं जीवन का सार और क्या लिखूँ  मेरे यार ||| ~~~~~~अनितापाल ~~~~~~~ #Anita Pal Sukhatri
कितना संभालू खुद को कितना रक्खूं हौंसला , कितने करीब आऊँ कितना रक्खूं फासला | वक्त बेवक्त ये नैंन बरसते है तुमसे मिलने को हरपल तरसते है , तडपती हूँ तुम्हारी याद में इस कदर जल बिन जैसे तडपती मीन है कैसे बताऊँ बिन तुम्हारे मेरी ज़िंदगी का क्या सीन है || करके प्यार बे-इंताह छोड दिया मुझे तन्हा याद जब तुम्हारी आती है ना जीती हूँ ,ना मरती हूँ नयनों से निकले अश्कों को होठों से पीती हूँ बिन तुम्हारे , तुम्हारी यादों के सहारे जीती हूँ || #AP
७४६                     (१) जब जब मैं हुई निराश किसी ने ना मुझको सहारा दिया जब जब फंसी मैं ज़िंदगी के भंवर में हर किसी ने मुझसे किनारा किया `|||              (२) मैं लहरों सी गिरती और उठती रही रह रहकर खुद से बिछुडती रही बन योद्धा हालातों से लडती रही मैं खुद ही बिखरती संवरती रही ||                 (३) ज़िंदगी से कभी शिकवा हुआ कभी  शिकायत हुई कभी हुए तन्हा कभी नयनो से बरसात हुई वक्त के साथ भर गये घाव कल तक थे तपे धूप में आज सुकून की मिल गयी छांव || #AP
७४९ लगाया है इलजाम मुझ पर नींद अपनी चुराने का कुछ ऐसा है  अंदाज उनका प्यार जताने का || #AP
761 ये औरतें होती है साहब रो लेती है अकेले में पी लेती है आंसू उफनती है दूध सी खिलती हैं धूप सी सूखती है दूब सी ये औरतें होती है साहब बहती है नदियाँ सी उलझती है लडियां सी खिलती है फुलझडियां सी ये औरतें होती है साहब मुरझाती है फूल सी उड़ती है धूल सी चुभती है शूल सी ये औरतें होती हैं साहब रहती है हमेशा आधी हिस्से में आये बर्बादी कही जाती है आधी आबादी ये औरतें होती है साहब होती है चंद्रमुखी बन जाती है ज्वालामुखी कभी रहती हैं सुखी कभी होती है दुखी ये औरतें होती है साहब होती है राख सी दहकती है आग सी उड़ती हैं फाग सी ये औरतें होती है साहब दुलारती हैं माँ सी फुफकारती है नाग सी जोड़ती है देवी सी तोड़ती है शत्रु सी ये औरतें होती है साहब || #AP