४७५ "प्रेम पत्र -5" "" प्रियवर "" जेठ की इस तपती दुपहरी में जब हर कोई आसमां को तकता है ,बादलों को घूरता है सिर्फ चंद बुंदों की आस में |,इसी मौसम में विरह अग्नि में झुलसते हुए ह्रदय रूपी आकाश से कल्पना रूपी बादलों को माध्यम बनाकर प्रेम की बुंदों को शब्दों में पिरोकर तुम तक भेज रही हूँ ताकि जब विरह वेदना रूपी आग जब तुम्हें झुलसाये तब इन प्रेम की बूंदों का सहारा लेकर सावन की रिमझिम फुहार तुम्हें तृप्त कर सके | डियर चिंता बिल्कुल भी मत करना ये दूरियां कुछ नहीं बिगाड सकती हमारा | जेठ की धूप हो य़ा सावन भादो की झडी य़ा फिर हो माघ पौष की सर्दी या हो किसी भी मौसम की मार , इन सब से तुम्हें बचा लेगा मेरा प्यार || " तुम्हारी प्रियतमा " नीलम
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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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"उल्लू बनाओ" जब भी मेरे पास खाली समय होता है उसको या तोमैं अपनी डायरी के साथ बिताना पसंद करती हूँ या बच्चो के साथ | बच्चा भले ही एक दिन का क्यूँ ना हो| मुझे "बच्चे मन के सच्चे " बहुत भाते है | और मैं बच्चो से दोस्ती करने में बहुत माहिर हूँ | एक ही पल में बच्चा बन उनसे घुल मिल जाती हूँ | बच्चो की अपनी दुनियां, अपने शब्द ,अपने अर्थ और अपना शब्दकोश | आज एक बच्चा दीदी आप बोर नहीं होते अपनी लाइफ से ?? मैं --- बोर क्यूँ ??? आप दिन भर बिजी रहते हो?? खेलते भी नहीं अपने friends के साथ ????? मेरे सब friends दूर दूर रहते है ना .... अच्छा तो आप उनको उल्लू तो खूब बनाते होंगी ??? उल्लू कैसे बनाते है frnds को?? मैने मासूम सी शक्ल बनाते हुए और माथे में बल ड़ालते हुए कहा | अच्छा आपके frnds गर्ल या बॉयस बच्चे ने पूछा ??? दोनो है ..... हां तो उल्लू कैसे बनाते है ??? मैने फिर से पूछा ... आपको उल्लू लड़के को बनाना है या लड़की को?? दोनो को बनाना बता दीजिये |(😂😂) अच्छा सुनिये ..... बच्चे के इतना कहते ही मैने अपनी हंसी को रोकते हुए ......हां हां बताईये ..... आप ना अपने
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५६४ सुना था जिस उम्र के दौर से मैं अब गुजर रही हूँ इसमें नींद उड जाया करती हैं ,किसी की प्रेम रोग के चलते तो किसी की ज़िम्मेदारियों के चलते |पर अजूबापन यहाँ भी देखने को मिला | नींद तो बस इर्द गिर्द ही रहती है |दोपहर लंच के बाद मिनी नैप ,जी हाँ वही मिनी नैप जिसके लिये मैने कई लोगो को spiritual सेमिनार अटेंड करते देखा है पर मैंने इसके लिए कभी प्रयास नहीं किया | रात में बिस्तर पर ज़ाते ही एक सेकेन्ड में नींद के आगोश में | किताब लेकर बैठो तो निद्रा रानी दौडी चली आती है | प्रभु की कृपा है जवानी की उम्र में भी बचपन वाली नींद की दौलत हमारे पास है | जब मैने सुना था कि बडे होने के बाद नींद नहीं आती तो डर के कारण नींद लाने का मंत्र याद कर लिया था |पर उसकी कभी ज़रूरत नहीं पडी ..|फिर भी सोने से पहले निम्न लिखित दो लाइने अक्सर गुनगुना लेती हूँ | "मुझे अपने सिरहाने पे थोडी सी जगह दे दो मुझे नींद न आने की कोई तो वजह दे दो |" #अनितापाल
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५६३ "हलचल " गर्भ में बेटी माँ से बात किया करती थी माँ भी बेटी के दिल की हर धडकन को सुना करती थी | बेटी जब पूछती "माँ धरती तो बहुत सुंदर होगी ??" माँ जवाब देती हाँ बेटी धरती तो बहुत सुंदर है परंतु धरती के लोग .........?(कहकर माँ थोड़ा रूक सी जाती ) हाँ बेटी यहां नदियां है ,पहाड है ,खेत खलिहान है यहाँ तो बिल्कुल ही एक नया जहान है || कुल मिलाकर धरती पर बहुत हलचल है | पैदा हुई जब बेटी तो चारो तरफ सन्नाटा था देखकर शांति चारो ओर बेटी के मन में प्रश्न उठा था | माँ आप तो कहती थी धरती पर बहुत हलचल है माँ ने कहा हाँ बेटी , अभी तो ये तुम्हारा पहला ही पल है | धीरे धीरे बेटी बडी होती गयी सखियो संग गुड्डे गुडियां के खेल में खो गयी | एक दिन धूल से सने हुए माँ की गोद में आयी बोली माँ ये धरा तो उससे भी सुंदर है , ज़ितनी आपने थी बतायी || दबी जुबां से माँ ने बेटी की हाँ में हाँ मिलायी जैसे जैसे बेटी बडी होती गयी ,माँ ने इस दुनियां की हकीकत उसे समझायी | इस धरा पर नारी का नहीं है सम्मान अपमान के घूंट वह पीती है दिन रात | क्योंकि यह है पुरूष प्रधान समाज नारी क
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५५९ एे मेरे मन कितने करूँ जतन ढूँढ़ती हूँ तुझे यहाँ मिलता है तू वहाँ कभी बादल सा आवारा कभी दुखों का मारा कभी खुशियों का ज़रिया कभी आँसू का दरिया || एे मेरे मन कितने करूँ जतन कभी भरता है उडान कभी बन जाता नादान एे मन क्यूँ डोलता है इधर उधर कभी हो जाता है खुद से ही बेखबर कभी तो संग मेरे बैठकर ऐ मन तू मुझसे बात कर तू ही मेरी मंजिल तू ही मेरा हमसफर | एे मेरे मन .... #अनितापाल
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"प्यार के बीज " आधुनिक युग में प्यार की परिभाषा तो संकीर्ण हो गयी है पर प्यार के बीज भी खरपतवार के जैसे हो गये है जब तब ,यहाँ- वहाँ ,जहां तहां उग आते है |खरपतवार रूपी प्यार के ये बीज स्कूल ,कालेज ,बस ,ऑटो ,फेसबुक ,टविटर ,व्हाटसअप कहीं भी उग आते है |फेसबुक ,व्हाटसअप जैसे तमाम सोशल साइट्स इन खरपतवारों को खाद ,पानी प्रदान करते है और इनके कारण ही चंद दिनों में प्यार की फसल लहलाने लगती है | कभी तो प्यार की लहलाती हुई फसल चंद पलों में ही पानी के बुलबुले की तरह फुर्र हो जाती है और कभी '"योग्यत्म की उत्तरजीविता " को सिद्ध करते हुए आभासी दुनियां की मोहब्बत वास्तविक दुनियां का रूप ले लेती है | संचार के क्षेत्र में हुई प्रगति और टैक्नोलोजी ने प्रेम के स्वरूप को ही बदल के रख दिया | दिनप्रतिदिन आ रही नयी टैक्नोलोजी के कारण "प्रेम की पतली गली "कब "नेशनल हाईवे" बन गयी पता ही नहीं चला | इधर लिखा संदेश पलक झपकते ही दूसरी तरफ पहुँच जाता है वो भी इस निश्चितता के साथ कि प्रेमी य़ा प्रेमिका के पास संदेश सही सलामत पहुँच ग
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२५४ अभी अभी इनबोक्स में एक सज्जन ने पूछ लिया ..... हाईस्कूल से लेकर परास्नातक तक में कितनी बार आपको प्रथम श्रेणी प्राप्त हुई ??? "सफलता का अन्दाजा इस बात से ना लगाये कि आप कहाँ पहुँचे ब्लकि इस बात से लगाये कि आपने चलना कहाँ से शुरू किया था |" आपके प्रमाण पत्रों में प्रथम श्रेणी मिलने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है आपका व्यवहार अव्वल दर्जे का हो |आप अपने संघर्ष को एंजॉय करते हो |सुख दुख में सम रहते है |मैने दौलत और शोहरत वालो को सुसाइड करते देखा है | सच बताऊँ तो मैने मार्कशीट में मिले अंको की कभी परवाह नहीं की क्योंकि मेरा आत्मविश्वास ,मेरा संघर्ष ,मेरी सहजता और मेरी आत्मीयता अपनों के दिलो पर राज करने और ज़िंदगी की परीक्षा प्रथम आने के लिए काफी है |(#मियां_मिठ्ठू 😂) #अनितापाल