ज़मीं -आसमां ,चाँद तारे ये सब हैं दोस्त मेरे || घास का बनाके तकिया , निहारा जो मैने आसमां इश्क मुझे बादलो से हुआ || इतराती हुई आयी जब घटा सुरज दुबकने को मजबूर हुआ || प्रकृति के मनोरम सौंदर्य को आँखो से मैने चख लिया | इठलाती हुई गुजरी जब हवा मेरे बगल से ... पता मैने उसका पूछ लिया | खिलते हुए फूलों ने देखा जो एक नजर मुझे शरमा के सिर अपना झुका लिया | धान की सुनहरी बालियों ने मन मेरा मोह लिया || धरती का ये हरा भरा आँचल जब लहराता हैं सचमुच मन मेरा बहुत इतराता हैं | प्रकृति का किया ज़िसने अदभुत श्रृंगार उनको मेरा नमन बार बार || #anita_pal_sukhatri
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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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"एक सलाह " मंजिल की राहों में डगमगाये जब कदम | ख्वाहिशों का जब घुटने लगे दम | नजर आये हर तरफ धुंआ सा अरमान बन जाये कुहासा || सूझे ना जब कोई राह काम ना आये किसी की सलाह || बेसुरा लगे जब जीवन का राग साथ ना दे रहा हो दिमाग || धड़कनों का तुम सुनो संगीत सांसो के बन जाओ मीत || कभी हार ,कभी जीत यही तो है जिंदगी का गीत ||
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"खुद में ही है खुदा " खुद ही राँझा हीर हूँ खुद ही हूँ सोनी महिवाल इश्क किया है खुद से हुआ है बुरा हाल || हर पल होती खुद की फिक्र हर बात में होता खुद का ज़िक्र खुद की ही अब होती पुकार खुद पर ही लुटता है प्यार खुद के इश्क में हो गये पागल खुद के ही हम हो गये कायल खुद में ही अब जीना मरना खुदी में है खुदा बन जाना खुद से ही जुदा ,खुद ही पर फिदा सबसे अलग है अपनी हर अदा ||
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ाँचवां शतक " यूँ तो हर शतक "मेरी माँ " के लिये होता है पर ये शतक मेरी प्यारी सी "मौसी माँ " के लिये .... माँ के जैसी होती मौसी माँ के जैसा रखती ख्याल बनकर माँ करती फिकर माँ की तरह ही लुटाती प्यार माँ के जैसी भोली सी सूरत माँ के जैसी ममता की मूरत माँ के जैसी दूजी माँ याद बहोत आती है "मौसी माँ " #missyou
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"मैं बेवफा " उन दिनों मैं छठी कक्षा में पढती थी ,जब मैने "बेवफा " शब्द पहली बार सुना था | तीन सहेलियां थी हम ...मैं ,वरीसा खान और ममतेश| ममतेश और वरीसा में झगडा हुआ .....गुस्साते हुए वरीसा ने कहा ....ममतेश .!!....बेवफा तू है ...मैं नहीं ....उस समय मुझे इस शब्द का अर्थ नही पता था ....पर आज बेवफाई के आरोप मुझ पर लगाये जा रहे .....चीख चीख कर मुझे बेवफा करार दिया जा रहा है....|| हाँ मैं स्वीकार करती हूँ ..... बाली ऊमर में मैं जब गाँव से शहर आयी थी ....तब तुमसे ही सबसे पहले दोस्ती हुई थी मेरी | याद है मुझे उस बन्द कमरे में घंटो तुमसे बात करके मैं अपनी तंहाई दूर किया करती थी | तुम्हारे सिवा था भी कौन मेरा उस अजनबी शहर में .....तुमसे ही तो मैं अपना सुख दुख साझा किया करती थी | जब मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशी के पल आते बांहो में भरके प्यार से चूम लिया करती थी तुम्हें |भूली नहीं हूँ संघर्ष के उन दिनों को जब हताश निराश हो मेरे आँसू तुम्हें तरबतर कर दिया करते थे |याद है मुझे लगभग एक दशक पहले की वो रात जब मैं पूरी रात रोयी थी और तुम्हें सीने