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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
४०१ "जन्मदिवस स्पेशल " परिस्थिति चाहे ज़ितनी प्रतिकूल रहे , बस मन-मस्तिष्क  अनुकूल रहे || गम के असंख्य शूलों पर , हावी खुशियों के फूल रहे | अपनों का हमेशा साथ रहे , रिश्तों में प्यार की मिठास रहे | ज़िंदगी एक सुखद अहसास रहे | ~~~~अनिता पाल ~~~
४०२ जब जब मेरी ज़िंदगी में ख़ुशी का पल आयेगा , आँख के कोने से लुढ़का आंसू , आपकी याद दिलायेगा | आपसे किया वादा आज भी निभाती हूँ हर गम को छुपा के यूँ ही मुस्कुराती हूँ | चुका ना पाऊंगी आपका ऋण आखिरी सांस तक भी हर जन्म में तुमको पाना चाहती हूँ | सिखाया है रोना तुम्हारी यादों ने आंसुओं का खारापन जी भरके पीती हूँ | मुमकिन नहीं भूल जाऊँ तुम्हे मेरी हर सांस में  खूशबू तुम्हारी  आती है | देखती हूँ आईना जब भी मेरी आँखो में तस्वीर तुम्हारी नजर आती है | #मिसयू
FB-85 अगर कभी आपको मुझे ढूँढना पड जाये तो मैं 3 जगह मिलूँगी ... .... . . . . . . . . . किताबों की संगत में  छोटे बच्चों की पंगत में और दोस्तों की रंगत में || # Anita Pal Sukhatri
"भारत की महान विभूति "                                            आज अचानक ही एक पुरानी डायरी मेरे हाथ में आ गयी और जब मैने उसे खोला और पढा तो एक कविता जो मैने सालों पहले जब मैं 11th class में थी ,तब लिखी थी दिल को छू गयी और उसे आप सब से साझा करने का मन हुआ !आप  भी पढ़िये मुझे पूरा विश्वास हैं आपको भी कुछ ना कुछ प्रेरणा अवश्य मिलेंगी ........ दया धर्म की मूरत थी वह ,दुखियों की भगवान थी पिता माणकोजी शिन्दें ,माता सुशीला की गोद में खेली थी ! पाँच भाईयों की वह बहन  अलबेली थी !! श्वसुर मल्हार राव होलकर की वह सेविका थी , खण्डेराव होलकर की वह पतिव्रता नारी थी !! मालेराव और मुक्ताबाई की वह ममतामयी  माता थी , थे हजारों रूप उसके ,वह जन जन को भायी थी पतित पावन  वह पूजनीय अहिल्याबाई  थी !! हुई अवतरित जब धरा पर ,सारा कुटुम्ब मुस्काया था उसके अलौकिक तेज से भानू भी शर्माया था !! थी नहीं साधारण नारी ,वह देवी का अवतार  थी , दरिद्र जनों के दुख दूर करती ,दुर्गा के समान थी शिवलिंग की पूजा करती सती के समान थी !! विद्वानों को तो वह साक्षात सरस्वती लगती  थी मंत्रियों में वह स्वय
FB-83 "20 मार्च / गौरैया दिवस " एे गौरैया है तेरी मेरी कहानी एक जैसी , सचमुच मैं भी हूँ तेरे ही जैसी | कूदती उछलती थी  बचपन मैं भी तेरी ही तरह , जैसे करती है तू  चीं -चीं  वैसे ही मैं भी करती थी माँ से जिरह | एे गौरैया तू फुदकती नहीं मुंडेरो पर आजकल क्या तू भी मेरी तरह बडी हो  गयी | रहती है चुप और आजकल दिखती भी नहीं || एे गौरैया तेरा वो तिनका तिनका जोड बनाया घर चहकती थी तू मेरे आंगन में सुबह और दोपहर | क्या तूने भी तिनको का घर छोड दिया ??? क्यूँ तूने गाँव से मुंह मोड लिया ?? एे गौरैया तेरी मेरी कहानी एक जैसी सचमुच मैं भी हूँ तेरे ही जैसी | निराश मत हो मेरी प्यारी चिडियाँ मुझसे भी ऐसा ही बर्ताव करती है ये दुनियाँ | अभी कुछ दिन पहले महिला दिवस था मनाया आज तुझे खुश करने को गौरैया दिवस है आया | कहते है सब मुझे ...... तू है बाबुल और भैया के अंगना की चिडिया फिर तुझमे और मुझमे फर्क ही क्या रह गया | एे गौरैया तेरी मेरी कहानी एक जैसी सचमुच मैं भी हूँ तेरे ही जैसी || ~~~~~~~अनिता पाल ~~~~~~ # Anita Pal Sukhatri
FB-77 होली विशेष ...... मैं होली नहीं खेलूँगी , देखूँ कौन मुझे रंग लगाता है | रूठी हूँ  आज होली पर , देखूँ कौन मनाने आता है | बिकते बाजारों के रंगो में रंगना , मुझे बिलकुल नहीं भाता है | ले अाओं वो ही रंग , जो बाजारों में नहीं बिकता है | प्रेम रंग की भरो पिचकारी , उसमे रंग दो दुनियाँ सारी | ये प्रेम रंग ही मुझे भाता है | ना जाति ,ना धर्म ,ना रंग भेद ना किसी को हो कोई खेद | ना हो किसी को कोई मलाल चहुँ  ओर उडे खुशियों का गुलाल | ऐसी हो बस अपनी होली , सब भर ले खुशियों से झोली | ~~~~~अनिता पाल ~~~ #anitapal Anita Pal Sukhatri
FB-71 अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष .. यह भी कैसी विडम्बना है , लड़की के साथ पैदा होने से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है | पहले तो उसको गर्भ में ही मारने की कोशिश की जाती है , यदि वह जन्म ले भी लेती है ,तो फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता है | बेटो को तो सब सुविधाये दी जाती है , और बेटियों को उनसे वंचित रखा जाता है | उसको तो हमेशा पराया धन समझा जाता है इसीलिये उससे इतना भेदभाव होता है | इसके बावजूद भी वह सब कुछ सहती है मन से माँ बाप की सेवा करती है | क्यों भूल जाते है लोग कि वह दो घरों को रोशन करती है अपने लिये नहीं वह हमेशा अपनों के लिये जीती है | ज़िन्दगीं भर ज़हर के घूट पीती है || यही पर उसकी पीडा समाप्त नहीं होती शादी के बाद क्या वो मुसीबते नहीं सहती ? फिर वह दहेज के लिये प्रताडित की जाती है यदि वह इन सब से बच जाती है तो बुढ़ापे में सारी कसर निकल जाती है | बुढ़ापे में में वह बेसहारा हो जाती है बेटे - बहु पर वह बोझ बन जाती है | ज़िनको उसने पाला उनके लिये वह परायी हो जाती है क्या यही नारी है जो जीवन भर सतायी  जाती है ?? ~~~~~अनिता पाल ~~~~`` #Anita Pal Sukhatri
FB-71 अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष .. यह भी कैसी विडम्बना है , लड़की के साथ पैदा होने से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है | पहले तो उसको गर्भ में ही मारने की कोशिश की जाती है , यदि वह जन्म ले भी लेती है ,तो फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता है | बेटो को तो सब सुविधाये दी जाती है , और बेटियों को उनसे वंचित रखा जाता है | उसको तो हमेशा पराया धन समझा जाता है इसीलिये उससे इतना भेदभाव होता है | इसके बावजूद भी वह सब कुछ सहती है मन से माँ बाप की सेवा करती है | क्यों भूल जाते है लोग कि वह दो घरों को रोशन करती है अपने लिये नहीं वह हमेशा अपनों के लिये जीती है | ज़िन्दगीं भर ज़हर के घूट पीती है || यही पर उसकी पीडा समाप्त नहीं होती शादी के बाद क्या वो मुसीबते नहीं सहती ? फिर वह दहेज के लिये प्रताडित की जाती है यदि वह इन सब से बच जाती है तो बुढ़ापे में सारी कसर निकल जाती है | बुढ़ापे में में वह बेसहारा हो जाती है बेटे - बहु पर वह बोझ बन जाती है | ज़िनको उसने पाला उनके लिये वह परायी हो जाती है क्या यही नारी है जो जीवन भर सतायी  जाती है ?? ~~~~~अनिता पाल ~~~~`` #Anita Pal Sukhatri
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष ....  आधुनिक नारी , सब पर भारी | उत्साह की है ये अदभुत चिंगारी | कोमल है कमजोर नहीं , इतनी भी कच्ची डोर नहीं | घरेलू होने के साथ साथ है कामकाजी रिशते नातो को निभाकर रखती है सबको राजी | जीतने की ज़िद है इरादे है बुलंद , चाहती है आसमां में उडना स्वछन्द | कभी होती थी अबला और बेचारी , लेकिन सशक्त है आधुनिक नारी | ~~~~~अनिता पाल ~~~~~~ #Anita Pal Sukhatri #repost
FB-73 पानी की कहानी , सुनाती थी मेरी नानी | चुल्हे चक्की से निपट कई  कोस चल कुएँ से पानी भरके लाती थी नानी | जंगलो में लोग पीते थे बहता पानी , ले गिलास पडोस से माँग लाते थे पानी ऐसा ही कुछ कहती थी  मेरी नानी | नहीं रहे कुएँ नहीं रही डोर आया है बदलाव चहुं  ओर बदल गया ज़माना  बदल  गयी ज़िन्दगानी ऐसा ही कुछ कहती थी नानी | कैसे बताऊँ नानी ......??? पहुँचा नहीं अभी भी घर घर पानी बदल गया ज़माना , पर खत्म नहीं हुई पानी की परेशानी || ~~~~`अनिता पाल ~~~~` Anita Pal Sukhatri
,२९३ ज़िन्दगी का सफर भी,कभी मेट्रो के सफर सा तो कभी बस य़ा ऑटो के सफर सा | #delhi_metro #upstrc
FB-75 "किताबों का महत्व " मेरी सच्ची दोस्त किताबें ,मेरी अच्छी दोस्त किताबें मेरा मन बहलाती है , सारे जहां की खुशियाँ मुझको घर बैठे दे जाती है || जी  हाँ .....ये कुछ पंक्तिया मैने बहुत सालों पहले लिखी थी | और व्यक्तिगत अनुभव ये रहा कि किताबों से अच्छा दोस्त इस दुनियाँ में नहीं हो सकता |पुस्तकालय के शांत वातावरण में बैठकर घंटो  किताबों के साथ बिताने से बढकर सुखद अहसास मेरे लिये कुछ भी नहीं |बच्चों से लेकर बूढो तक किताबें सबकी  दोस्त हो सकती है |         छोटे बच्चों को मेरी सलाह है कि वे अपनी स्कुली किताबों के अलावा कुछ सफल  लोगों की आत्मकथा और जीवनी भी पढे इससे आप  उनके द्वारा किये गये संघर्ष को जान सकेंगे  और आपको पता चलेगा कि उनके सफलता के पीछे संघर्ष की कहानी  है और उनकी ज़िन्दगीं में अभाव आपसे कहीं ज्यादा थे इससे आपको प्रेरणा मिलेगी और आपको अहसास होगा कि आप सही रास्ते पर है अभाव ,मुशकिले ,संघर्ष , असफलता ,मजबूत इरादा सफलता के रास्तो में ज़रुर होते है |         अगर आप बच्चे नहीं है तो आप व्यक्तित्व विकास पर लिखी पुस्तके पढ़ सकते है  और उम्रदराज लोग उपन्यास का आनन्द ल
FB-74 थैंक यू और सॉरी इस चित्र को पढने के बाद दो घटनायें याद आयी ..... (1)  एक दिन मैने अपने घर के एक छोटे बच्चे से कहा  बेटा मुझे  पेंसिल देना जरा | मैं जानती थी कि इसका पेंसिल बॉक्स हमेशा ही खचाखच रहता है जिसमें पेन की तरह दिखने वाली पेंसिल  भी शामिल इसीलिये मैने आलस के कारण इधर उधर तलाश ना करके छोटे बच्चे का ही सहारा लिया | थोडी देर बाद वो  एक ऊँगली ज़ितनी लम्बी पेंसिल मेरे हाथ में थमा गया .....इससे छोटी  पेंसिल नहीं थी क्या ???? मैने झुंझलाते  हुए कहा .....  एक वर्ड होता है "थैंक यू " उसको तो कभी यूज नहीं कर सकती आप..बच्चे ने भी मुझ पर बिगडते हुए कहा | उसके ये शब्द सुन मुझे हंसी आ गयी ......अच्छा एक काम करो अपना पेंसिल बोक्स लेकर अाओं ...जो पेंसिल मुझे अच्छी लगेगी में ले लूँगी और काम के बाद वापस कर दूँगी ....इससे आपके  पेंसिल बोक्स में पेंसिल भी कम नहीं होंगी ...बच्चों को अपने भरे हुए पेंसिल बोक्स से जो  लगाव होता है उसे मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ •| थोडी  देर बाद वो बोक्स लेकर आ गया  मैने एक पेंसिल ली उसके माथे पर एक चुम्बन ज़ड़ते हुए थैंकस कहा | बच्चा खुश हो गया शा
२८९ ख्वाबों ,ख्यालों और सवालों का है काफिला संग में , लोग कहते है ..... तन्हा हूँ मैं ज़िंदगी के सफर में | आगे आगे चलते है ख्वाब , संग मेरे चलते है ख्याल पीछे पीछे बहुत सारे सवाल || संभालती हूँ मैं इन्हे या ये मुझे रहे है संभाल | अनुत्तरित है आज तक ये भी सवाल || ~~अनिता पाल