दो दिन पहले एक सहकर्मी ने मजाक करते हुए कहा ...अनिता मैम आपको याद है ....???एक बार आप आॅटो का इंतजार कर रही थी ....मैने अपनी कार रोककर ....आपसे बैठने के लिए कहा था .....आपने तपाक से मना कर दिया था ... ..हाँ सर तो आपने सोचा होगा ये मैडम कितनी खडूस सी हैं ??😂😂 actually सर बात ये थी मुझे कालेज जॉइन किये ..2 दिन ही हुए थे ...मैं आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी ...एक तरह से आप मेरे लिए अनजान थे .....इसीलये भरोसा नहीं किया ... बात कई साल पहले की है .....दिल्ली में आये कुछ दिन ही हुए थे ....एक दिन सर ने कहा था .....कल को जॉब करोगी य़ा अफसर बन जाओगी तो अपने परिवार वालों के अलावा किसी पर भी ज्यादा भरोसा मत करना ...चाहे वो तुम्हारा सीनियर हो ,सहकर्मी हो ,चपरासी हो य़ा ड्राइवर हो ......सर की बाते हमेशा याद रहती है | माँ कहती थी किसी अजनबी पर भरोसा मत करना .....पर कैसे बताऊँ माँ कुछ अजनबी ..मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गये है ....भैया ,दीदी ,दोस्त और सहेली के रूप में || वैसे इंसानो को पहचानने में गलती करती नहीं हूँ ...दिमाग में लगे
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FB-58 विधाता से मैं अक्सर शिकायत करती थी , नवाजा है मुझको बहुतो हुनर से | बनाया है मुझको बहुत जतन से , फिर क्यूँ नहीं कागज में रंग भरना सिखाया सुन मेरी शिकायत विधाता ने फरमाया || प्रकृति के रंग बहुत ही खूबसुरत है , फिर तुम्हें कागजो में रंग भरने की क्या ज़रूरत है | बस तुम प्रकृति की सुन्दरता को निहारो , इसी खूबसुरती को दिल में उतारो | प्रकृति सौन्दर्य प्रेरणा और प्यार है , इसी में छिपा जीने का सार है || विधाता की बाते दिल को भा गयी , मैं प्रकृति के और करीब आ गयी || एक दिन सुनी मैने गुलाब की प्रेम कहानी , जाना क्यूँ दुनियाँ है उसकी दीवानी | रंगो से बाते करके हुआ सुखद अहसास , ज़िन्दगीं में घुल गयी प्यार की मिठास || ~~~~~~~अनिता पाल ~~~~~~~
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६७ "मेरा मन बंजारा " पागल पंछी आवारा , मेरा मन बंजारा | रोके ना किसी के रोके से , झुके ना मुशकिलों के झोंके से माने ना किसी के टोके से || पागल पंछी आवारा , मेरा मन बंजारा | हवा सा चंचल , इसमे नदी सी हलचल सागर सा है ये गहरा पागल पंछी आवारा मेरा मन बंजारा | समझ ना आये मुझे इसकी नादानी करता हमेशा ये मनमानी | रास ना आये इसे कोई पहरा पागल पंछी आवारा मेरा मन बंजारा || # Anita Pal Sukhatri #re
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FB-78 "आज का कार्यक्रम " खुद से करेंगे बाते , खुद ही से होंगी मुलाकाते | खुद से होंगे खफा , खुद से ही वफा | आज है नया इरादा खुद से करेंगे वादा | खुद ही से ज़ुदा और खुद ही पर फिदा | खुद से रूठना और खुद को मनाना सजधज के खुद ही को रिझाना | खुदी में आज खुदा है बन जाना , बस आज खुद से है प्यार जताना || `~~~~अनिता पाल ~~~~ #Anita Pal Sukhatri
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ज़मीन से जुडी हूँ ,इंसानो की कद्र जानती हूँ अच्छे -बुरे को भलीभांति पहचानती हूँ | यूँ तो भोली सी सुरत है मेरी पर गलत को सबक सीखाना भी जानती हूँ | ज़िन्दगी में सहे है बहुत रंजोगम पर मुशकिलों को पार करना भी जानती हूँ | आँखो में झिलमिलाते ख्वाबों को हकीकत में बदलना जानती हूँ || अच्छी हूँ बस अच्छों के लिए बुरों को उनकी औकात दिखाना जानती हूँ | यूँ तो रहती है नजरों में हया , पर वक्त आने पर आंखे दिखाना जानती हूँ || मुस्कराती हूँ हर गम को छुपाकर इस ज़िन्दगी की कीमत पहचानती हूँ ||
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अब तो लिखते हुए भी डर लगता है | कलम चलाने से पहले रुह कांप जाती है ,मन चीखने लगता है ,रोंगटे खडे हो जाते है ,दिल दहाड मार मार कर रोने लगता है |मन में असुरक्षा की भावना घुसपैठ कर जाती है |बस दोष इतना ही है ना कि महिला शरीर धारण किया है | पर उस न्नही कली को अपने उस शरीर का भान भी नहीं है | और उस कली को खिलने से पहले ही इस कदर रोंद दिया जाता है कि अंतरआत्मा भी कराह उठे | यूँ तो गर्भ में मारने का बहुत प्रयत्न किया जाता है |पर अगर वहां से बच जाती है तो यहाँ नोच नोच कर मार दिया जाता है | मुन्नी और आसिफा तो चंद नाम है जो सबके कानों तक पहुँच ज़ाते है हर रोज ना जाने कितनी मुन्नी और आसिफा दरिंदगी का शिकार होती है और सब के सब मूकदर्शक बने रहते है | इस तरह की घटनाये सचमुच मुझे अन्दर तक तो झकझोर ही देती है साथ एक अजीब तरह का ड़र मन में घर कर जाता है | सोचने को मजबूर हो जाती हूँ कि दो दशक में नैतिकता का स्तर कितना गिर गया है या यूँ कहूँ कि नैतिकता का बुरी तरह पतन हो गया है |याद है मुझे अपना बचपन जब मैं खेतों से लेकर उस बियाबान जंगल (स्थानीय भाषा में जंगलात ) तक अकेले ही घूमा कर
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४१४ "मंजिल" चली जा रही थी सधे कदमों से मंजिल की ओर , इसी बीच पता चला मैं भी , किसी की मंजिल हूँ | रफ्तार धीमी कर दी मैने ये सोचकर , कोई तो अपने मुकाम पर पहुँचे || पर संशय में हूँ थोड़ी सी , ये सोचकर की, अक्सर मंजिल से चंद कदमों की दूरी पर राही रास्ता य़ा मंजिल बदल लेते है || ऐ राही तुम्हारा इंतजार रहेगा , तुम्हारी मंजिल को | बस पहुँचने में देर मत कर देना || ~~~अनिता पाल ~~~
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FB-103 "दो मिनट " मेरे घर के बगल में एक अपार्टमेंट बन रहा हैं जिसमे लगभग एक साल से काम चल रहा हैं उसमे काम करने वाले मजदूर मेरे घर के ठीक पीछे छोटी गली में एक अस्थायी तम्बू बनाकर रह रहे| चुकि अब अपार्टमेंट का बाहरी ढ़ांचा बन चुका हैं इसीलिये उन्होने रहने का प्रबंध अन्दर कर लिया लेकिन उनका चूल्हा अभी भी हमारे घर के पिछले दरवाजे के ठीक सामने हैं ( हम उसे कभी खोलते नहीं )| जब भी उनके यहां खाना बनता हैं तो खाने बहुत अच्छी सी महक हवा में तैर जाती हैं और इसी महक के साथ मुझे याद आता हैं "Engel's Law ", जिसमे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एें ग ल कहते हैं कि " एक परिवार की आय बढने पर उसका खाने पीने की वस्तुओं पर खर्च का प्रतिशत कम हो जाता है "| चुकि अभी इस परिवार की आय कम है इसीलिये यह अपनी आय का अधिक प्रतिशत खाने पर खर्च करता है | एक और बात क्योकि यह शारीरिक श्रम करता है दिन भर बोझ ढ़ोता है तो अच्छा खाना ज़रूरी हो जाता है | दूध ब्रेड खाकर इसका काम चल ही नहीं सकता | आज सुबह सवेरे मैं छत पर टहल रही थी | उसी पिछली गली में चूल्हा जल रहा था पति पत्नी दोनो चुल्ह