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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
४४८ हर क्षण ,हर पल नैनों का नीर अविरल || वो बाते ,वो यादे , जेहन में घूमते अधूरे वादे | मधुर मिलन की टूटती आस , इस जनम की अधूरी प्यास | हर पल पास होने का अहसास सचमुच तुमसा नहीं कोई खास | ~~~~अनिता पाल ~~
सुबह से शुरू हुआ हिचकियों का खेल दिन ढलते ढलते  मजेदार हो चला | स्कूल से आते ही बच्चे मेरी हिचकी को रोकने का जतन करने में लग गये | अच्छा आप एक काम करिये ......हमम्मं बोलो .....|>आप ना नाम लेना शुरू कीजिये ........पहला नुस्खा मेरी भतीजी  का ! हाथी ,घोडा ,कुत्ता ,बिल्ली  ,कबुतर ,तोता मैने नाम लेना शुरू किया !!! ओ माई गोड !;;!!! कहकर भतीजी सिर पीट ली | तो!???..अरे य़ार इंसानो के नाम लिजिये | अच्छा !इंसानो के ???? चिंटू ,मिंटू ,राम ,श्याम ,सीता ,गीता ,लक्षमी ...हंस्ते हुए मैने कहना शुरू किया | कुछ नहीं हो सकता आपका ....भतीजी ईरीटेट हो गयी | ज़िनका आपको लगता है कि वे आपको याद कर सकते है ....उनका लिजिये ...जो भी आपको मिस कर रहा होगा . .उसका नाम लेते ही हिचकी बन्द हो ज़ायेगी | गजब है हम भारत वाले भी .....कुछ ज्ञान तो यूँ ही अपने आप ही पीढी दर हस्तांतरित होता रहता है |तुम्हे किसने बताया ये सब ???हमे पता है  और ऐसा करने से हिचकी बन्द हो भी जाती है ,बच्चो ने दावे के साथ कहा | इधर मेरी हिचकी कुछ खाने के बाद थोडी देर के लिये बन्द हो फिर से चालू हो जाती और उधर बच्चो के नये नये नुस्खे | अग
"चलते चलते /आँखो देखी " अच्छे खासे तो चल रहे थे दोनो मुझसे आगे |सुषुप्त ज्वालामुखी कब जाग्रत हो विस्फोटित हो गया पता ही नहीं चला | ख्यालो में खोयी सी  मैं यूँ ही  धीरे धीरे  चल रही थी |मुझसे चन्द कदम आगे चल रहे एक विवाहित जोडे में झगडा होने से मेरी तन्द्रा टूटी | बातें कुछ यूँ हुई ....... भसरी पै मार दूँगा .(महिला की तरफ मारने की मुद्रा में हाथ उठाते हुए ).. मार कै देख ..(सीना तान पुरूष की तरफ लपकते हुए ) धक्का दे दूँगी .....!!!!!!! दे कै देख .......!!!!!(और दे भी दिया  ..बेचारा गाडी के नीचे आते आते बचा ) इतना सुनते पुरूष को बीच रोड पर  धकेल दिया गया ..... वही ले जाकर मारूँगा .....(चन्द कदमो की दुरी पर बने पुलिस स्टेशन की तरफ इशारा करते हुए ) यहां मैने एक बात नोटिस की महिला की कथनी और करनी में बिलकुल अन्तर नहीं था ... . उपरोक्त वार्ता में हुई तमाम गालियों को मैने लिखने की हिम्मत नहीं की  और उसके  बाद भरी सड़क पर हुई गालियों और मारपीट  को लिखने का साहस मुझमे नहीं है | इतनी गंदी गालियों को सुनकर मैं शरम से पानी पानी हो रही थी  | हाँ चलते चलते एक बार मैने सड़क पर हो रहे
"चलते चलते /आँखो देखी " अच्छे खासे तो चल रहे थे दोनो मुझसे आगे |सुषुप्त ज्वालामुखी कब जाग्रत हो विस्फोटित हो गया पता ही नहीं चला | ख्यालो में खोयी सी  मैं यूँ ही  धीरे धीरे  चल रही थी |मुझसे चन्द कदम आगे चल रहे एक विवाहित जोडे में झगडा होने से मेरी तन्द्रा टूटी | बातें कुछ यूँ हुई ....... भसरी पै मार दूँगा .(महिला की तरफ मारने की मुद्रा में हाथ उठाते हुए ).. मार कै देख ..(सीना तान पुरूष की तरफ लपकते हुए ) धक्का दे दूँगी .....!!!!!!! दे कै देख .......!!!!!(और दे भी दिया  ..बेचारा गाडी के नीचे आते आते बचा ) इतना सुनते पुरूष को बीच रोड पर  धकेल दिया गया ..... वही ले जाकर मारूँगा .....(चन्द कदमो की दुरी पर बने पुलिस स्टेशन की तरफ इशारा करते हुए ) यहां मैने एक बात नोटिस की महिला की कथनी और करनी में बिलकुल अन्तर नहीं था ... . उपरोक्त वार्ता में हुई तमाम गालियों को मैने लिखने की हिम्मत नहीं की  और उसके  बाद भरी सड़क पर हुई गालियों और मारपीट  को लिखने का साहस मुझमे नहीं है | इतनी गंदी गालियों को सुनकर मैं शरम से पानी पानी हो रही थी  | हाँ चलते चलते एक बार मैने सड़क पर हो रहे
"ख्वाब कोई " ख्वाब कोई बुन रही हूँ , धुन कोई सुन रही हूँ | ऊर्जा से ओतप्रोत असीमित उमंगो का स्रोत | ज़िन्दगी की खुशियाँ चुन रही हूँ ख्वाब कोई बुन रही हूँ ....... कभी अपनो की फिकर कभी खुद से ही बेखबर मंजिलो की राह पर चल रही हूँ ख्वाब कोई बुन रही हूँ ........ धुन कोई  सुन रही हूँ कभी राधा सी चंचल , कभी मीरा सी मगन कैसी लागी मुझे ये लगन ह्रदय के बजते तार कभी बजे मन की गिटार संगीत ज़िंदगी का सुन रही हूँ | ख्वाब कोई बुन रही हूँ ...... धुन कोई सुन रही हूँ कभी आँसूओ की बौछार कभी खुशियो की भरमार कभी दर्द की पुकार  कभी हंसी की बहार रंग ज़िंदगी के चुन रही हूँ | ख्वाब कोई बुन रही हूँ धुन कोई सुन रही हूँ | #अनितापाल #Anita Pal Sukhatri
अक्सर एक स्त्री और पुरूष के सहज आकर्षण को प्रेम का नाम दे दिया जाता है जबकि प्रेम की परिभाषा बहुत विस्तृत ,व्यापक और असीमित है | प्रेम अनंत है ,सुक्ष्म है और सर्वयापी है |                      प्यार इंसान को इंसान से ही हो ये भी ज़रूरी नहीं | प्यार जानवरो से भी हो सकता है ,प्यार उन पेड पौधो से भी हो सकता है ज़िन्हे आप हर रोज सींचते है  भले ही आप उनकी शीतल छाया में विश्राम ना करते हो या उनके फल ना खाते हो| प्यार  घर की उन  दीवारो से भी  हो सकता है  जो आपको अपनेपन का अहसास कराती है | प्यार उन सड़को  से भी हो सकता है ज़िनसे होकर आप हर रोज गुजरते है |  उन रास्तो में भी  बहुत अपनापन होता है ज़िनसे होकर हम पैदल खुद से ही बाते करते हुए हर रोज आते जाते है | एकांत में कुछ पल बीता लेने से खुद से भी प्यार हो सकता है  | इसीलिये प्रेम की परिभाषा और अर्थ को संकुचित ना करके अपने दिल और दिमाग को प्रेम की तरह विस्तृत  करने की कोशिश की जाये | (अगर आपको ये  पोस्ट समझ ना आये तो मुझे आपकी नासमझी पर प्यार आ सकता है क्योकि प्यार ,सुक्ष्म है और सर्वयापी है | #अनितापाल
"क्या लिखूँ " facebook पर what's on your mind लिखा देखकर कभी कभी तो बिना सोचे  ही लिखने को मिल जाता हैं ,कभी कभी सोचते हैं ' क्या क्या लिखे 'और कभी तो सोचती  हूँ 'क्या लिखूँ '! क्या लिखूँ बचपन की यादें  या आज के इरादे , जीवन का संघर्ष  या सफलता का उत्कर्ष ! मुश्किलों का बुढापा  या जवानी में मस्त  आपा, महकती भोर या दुख की दुपहरी , अंधियारी रात या सुबह सुनहरी ! चमकते दिन या काली रातें , कटु वचन या मधुर बातें ! आपनों का साथ या बिगडी हुई बात , वो मधुर मिलन या दुखद विदाई ! अपनों  की वफा या गैरों की बेवफाई , तारीफों के पुल या जग की हँसाई ! वो दुखता हुआ दिल या पास आती मंजिल , अपनों की चाहतें या जीवन की सौगाते !!! "'क्या लिखूँ " 'अनिता