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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
ज़िन्दगी " ज़िन्दगी काश तू अफसाना होती , हकीकत से हमारा सामना ना होता | ज़िन्दगी तू होती ऐसी किताब , ज़िसका हर पन्ना कोरा होता | लिख लेते तकदीर मनचाही गर ज़िन्दगी पर वश अपना होता ||
FB-5 "आँखे " ज़िंदगी की खुशियों को चुनती हैं , हर रोज नित नये सपने बुनती हैं  'आँखे '| जिन्दगी को बिखरते और संवरते देखती हैं , एक पल रोती हैं तो अगले ही पल  हँस देती हैं  ' आँखे '| यूँ तो हमेशा ही प्यार लुटाती हैं , पर कभी कभी नफरत भी जताती हैं  'आँखे '| दिल की बात को चुपके से कह देती है , पर कभी कभी बहुत कुछ छुपाती हैं 'आँखे '| आँसू और मुस्कान दोनों को पालती हैं , सच कहूँ तो जिन्दगी को संभालती हैं 'आँखे ' ~~~~~~~अनिता  पाल ~~~``~~~~
FB-4 सजने संवरने दो इन नन्ही सी परियों को , फिर कहां मिलता हैं ये मौका बेवजह संवरने का | जब पता भी न हो सुन्दरता की परिभाषा , और मन में हो संवरने की अभिलाषा | बिना किसी कारण बिन्दी ,लिपिस्टिक और पायल , बहुत कशिश रखता हैं ये आँखो का काजल | बडे होते ही सब शौक हो जाते हैं ओझल , व्यर्थ की भागदौड में जिन्दगी हो जाती हैं बोझिल | फिर सजना संवरना भी मजबूरी होता हैं , ज़रूरी ना होते हुए भी ज़रूरी होता हैं | मासूम सा बचपन ,भोली सी शरारते  बडे होते ही बदल जाती हैं सब आदतें | लौटता नहीं ये बचपन गुजर जाने के बाद , सबको आता हैं अपना बचपन  बहुत याद | ******"**"अनिता पाल ***"""*********
मौन है.?? दिल की भाषा प्यार की परिभाषा अपनेपन का अहसास रिश्तों की मिठास
आज इनबॉक्स में एक मैसेज मिला ...... Hi  di ........ (मेरी मित्रता सूची में ऐसे लोगो की भीड है ज़िनसे मुलाकात तो एक या दो बार ही हुई होती है लेकिन बार बार होने वाली बाते रिश्तों को प्रगाढ बना देती है .......उससे भी अजीब बात अपने दोस्तों के दुख में खुद से शामिल हो जाती हूँ तो अपनी खुशियों में दोस्त मुझे ढूंढ निकालते है .....😊☺) प्रोफाइल को थोड़ा गौर से देखा .... अरे सौम्या!!   डियर शादी हो गयी क्या ???? हाँ दी ....... वीकेंड में रिसेप्सन है .. .उसी का invitation देना था .... दीदी आप ज़रूर आना .....मुझे अच्छा लगेगा congratulation डिअर ......मैं ज़रूर आऊंगी | लड़का क्या करता है दीदी वे officer है इलाहबाद में posting है | दी मेरी पढाई continue रहेगी .....अच्छी फैमली है ....मेरी पढाई से उन्हे कोई समस्या नहीं | अरे सौम्या .....पापा का ज्यादा खर्च तो नहीं करायी हो ???? दहेज़ आदि में पापा का घर खाली तो नहीं कर दिया ????? दीदी आपको लगता है मैं दहेज वाली शादी करूँगी | नो चांस .. जब तक खुद को नहीं बदलेंगे ,समाज को बदलने के बारे में कैसे सोच सकते है दो साल पहले पापा  ने एक IAS लड़का दे
३१६ लडती हूँ खुद के अधूरेपन से हर रोज लडती हूँ मन के अन्तरद्वंद से || खोजती हूँ कुछ सवालों के जवाब हर रोज पढती हूँ जिन्दगी की किताब || #जिन्दगी_एकपहेली # Anita Pal Sukhatri
३०६ तुम्हारे स्मरण से मेरे दिन की शुरुआत  होती है , तुम्हारे  स्मरण से ही मेरी हर रात होती है। यूँ  तो हर रोज सपनों में मुलाकात होती है ,  पर नहीं अब तुमसे रूबरू  बात होती है।  A.P #Anita Pal Sukhatri
३०७ मन में हैं उमंगें  दिल में है तूफ़ान , ना रोको हमें छूना है आसमान | मंजिल पर हैं निगाहें ,पैरों में है छालें , मंजिल के राही हम है मतवाले | ऐ मंजिल तुझ पर सब कुछ है कुरबान , मन में है उमंगें दिल में है तूफ़ान | रास्ता है ये सागर सा  गहरा , अपना तो दिल बस मंजिल पर है ठहरा | किश्ती को निकालने में फूँक देगें प्राण | मन में है उमंगें दिल में है तूफान ............. #Anita Pal Sukhatri
३०९ बरस रही है आज रहमत अनगिन पर दिल भूलता नहीं मुश्किलों में गुजारे हुए दिन |😊😊
FB2 लड़के और लड़की में होने वाले भेदभाव के लिये मै हमेशा ही समाज को दोष दिया करती थी | मुझे लगता था कि हमारे समाज  में हम लडकों को खेलने के लिये कार और हवाई जहाज जैसे खिलोने दिये जाते हैं और लड़की से अपेक्षा की जाती हैं कि वो केवल गुड्डे गुडिया तक सीमित रहे ....और यही हमारे समाज  में लिंग असमानता का कारण हैं परन्तु मै गलत थी ....... "पुरूष समाज की देन हैं और महिला प्रकृति की " मीड जैसे चिंतक के ये कथन भी मुझे समझ नहीं आते थे ....लेकिन हाथ में झाडू थामे 11 महीने की इस नन्ही सी जान ज़िसे ये भी नहीं पता कि वो लड़की हैं या लडका ........ऐसे नये नये दृश्य रोज रोज देखने के बाद मुझे समझ आ गया हैं कि सचमुच महिला प्रकृति की अनोखी रचना हैं .  और वह माँ और दादी कि भूमिका निभाने के लिये  बचपन में ही तैयार हो जाती हैं .....और सीख भी बहुत जल्दी लेती हैं ......और मेकअप करने में तो अव्वल ....माँ के माथे पर बिन्दी हो या ना हो पर इनके माथे पर चिपकी ज़रूर  मिल जायेगी .....हाहाहा
"गलतफहमी " मेरी मित्रमंडली में महत्वाकांक्षी युवक - युवतियों  की बहुलता हैं | ज़िंदगी  के तीस बसंत पार सब जीवन साथी की तलाश में हैं |ये जानते हुए भी की कोईभी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं होता ,सब सम्पूर्ण की तलाश में हैं | एक अच्छी नौकरी वाले युवक को पढ़ी लिखी और हाउस वाइफ वधु चाहिये  और पढी लिखी लड़की हाउस वाइफ बनने को तैयार नहीं | बडी विचित्र सी स्थिति हैं | इस विचित्र स्थिति का कारण गलतफहमी हैं |                     वस्तुतःजब एक युवक ये कहता  हैं कि मुझे कुशल गृहणी चाहिये  तो उसका मतलब होता हैं कि उसे अपने कपड़े ,खाना और अन्य कार्य पूरे चाहिये ,ज्यादा से ज्यादा वो खुद की और अपने माता पिता की देखभाल को शामिल करता हैं |                 ठीक उसी तरह जब एक लड़की कहती हैं कि वो हाउस वाइफ बनकर नहीं रह सकती तो उसका ये मतलब नहीं होता कि घर के काम या परिवार के सदस्यों की देखभाल नहीं करेंगी ब्लकि उसके कहने का तात्पर्य हैं कि वो हर प्रकार की  स्वतंत्रता ( सामाजिक ,आर्थिक , राजनितिक ,मानसिक ,पारिवारिक ,शारीरिक ) चाहती हैं | और मुझे नहीं लगता किसी भी सभ्य पुरूष को महिलाओं की इन स्वतंत्रताओं पर