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७२२ गाँव वाले घर में , मेरे बचपन की यादे रहती है बोलता है घर का कोना कोना दीवारे भी बहुत कुछ कहती है || गाँव वाले घर में मेरे बचपन  की यादे रहती है सोचती हूँ ? एक बार  जाऊँ उस घर में समेट लाऊँ वो सब यादे जो बड़े शहरों में नहीं  मिलती है गांव वाले घर में मेरे बचपन की यादें रहती है || जी भरके चूम लूँ उन दीवारों को जो वर्षों माँ के स्पर्श से महकी है गांव वाले घर में मेरे बचपन की यादें रहती है || गगनचुम्बी इमारतों की दीवारे हर पल लगती है बेगानी मिट्टी की सौंधी खुशबू उनसे नहीं आती है गांव वाले घर में मेरे बचपन की यादें रहती || #AP
"बाल दिवस " घर को किलकारी से गुंजाते नन्हे मुन्नो को बस्ते के बोझ तले दबे बचपन को शरारत करते लड़कपन को सड़को पर कूडा बीनते बच्चों को दो जून की रोटी को तरसती मासूमियत को बाल उमर में जिम्मेदारी का बोझ ढ़ोती शख्सियत को ढ़ाबे पर बरतन धोते छोटू को चाय बेचते गोलू को बाल दिवस की शुभकामनायें |